Tuesday 14 June 2022

शिवभक्त की चेतावनी

हे शम्भू तेरी कृपा तले चल रहा हूं
तेरी भक्ति का ही ध्यान बस धर रहा हूं

मैं सत्य पर अडिग हूं कृपा से तेरी
इस कलियुग में हर झूठ से मैं लड़ रहा हूं

कई प्रश्न अब उठने लगे तेरी उपासना पर
और प्रश्न उठ रहे हैं मेरी आस्था पर

मूर्ख हैं जो तुझे नहीं पहचानते हैं
तेरी महिमा को नहीं वे जानते हैं

पर भक्त हूं मैं भी तेरा और अडिग स्वभाव से हूं
और साथ ही मैं प्रेरित गुरु परशुराम से हूं

शास्त्र छोड़ मैं शस्त्र उठाना जानता हूं
हर विरोध का उत्तर भी देना जानता हूं

संभल कर ओ मूर्खों उचित मार्ग पर आओ
किसी शिव भक्त के शांत चित्त को मत भड़काओ

उठे जो तन में ज्वार तो सब खंड खंड होता है
शिवभक्त का क्रोध भी शिव ही कि भांति प्रचंड होता है।।।

Saturday 18 September 2021

जो मिटा दिए इतिहासों से

जो मिटा दिए इतिहासों से अब उनका ही गुणगान लिखूँगा
मुगलों की वाह वाही पर मैं राणा की तलवार लिखूँगा

पहले किस्से से लेकर मैं अब तक के आघात लिखूँगा
हर आघात के प्रतिउत्तर में चेतक की भी टाप लिखूँगा

शुरू हुआ था किस्सा यह जब ड्रायस भारत में आया था
देख पुरु राष्ट्र की सम्पत्ति  वह मन ही मन में हर्षाया था

सोचा फारस का परचम वह भारत पर भी लहरा देगा
पर भूल गया था पुरु राज यहाँ से खाली हाथ ही लौटा देगा

बढा सिलसिला कुछ आगे तो सिकन्दर की भी चाह बढ़ी
लाकर उसने भारत की सीमा पर करदी अपनी फौज खड़ी

लेकिन था अंजान वह भी क्या वीर यहाँ की मिट्टी में हैं
लड़कर महाराज पुरुषोत्तम से उसके टूट गए थे सारे सपने

लौटा खाली हाथ सिकन्दर पर सेल्युकस को छोड़ गया
और तभी एक ब्राह्मण शिक्षक भारत का भाग्य मोड़ गया

कुछ घात हुए बाहर से तो कुछ दंश हमारे अपने थे
अखण्ड राष्ट्र  के धनानंद ने जब तोड़े सारे सपने थे

और तभी एक गुरु शिष्य की अग्नि परीक्षा शुरू हुई
बालक चन्द्रगुप्त की तब तक्षशिला में शिक्षा शुरू हुई

कर अभ्यास निरन्तर वह जब योद्धा बनकर के आया
और गुरु के एक आदेश पर उसने पूरा नन्द वंश ढाया

अब बारी सेल्युकस की थी जो फन फैलाए बैठा था
लिए हुए सेना को अपनी भारत को ताकता रहता था

करता था आघात निरन्तर पर सफल नहीं वह हो पाया
चन्द्रगुप्त ने तब उसको भी खाली हाथ ही लौटाया

फिर एक दिवस आवाज दिल्ली को गौरी की सुनाई पड़ती है
चढ़ी हुई जब भौं उसकी भारत की तरफ अकड़ती हैं

देख यह सब फिर फौलादी पृथ्वीराज भड़कता है
शत्रु के खेमे में तब बस चौहान सुनाई पड़ता है

किया युद्ध जब भी गौरी ने मुँह की उसने खाई थी
छोड़ दिया जीवित हर बारी यह चौहान की करुणाई थी

कोई विषधर स्वयं कभी विष का त्याग न करता है
पाकर अवसर लाभ हेतु वह अपना विष उगलता है

किया छल से कैद चौहान को और नेत्रों पर आघात किया
लेकर गर्म छड़ों से उसने दोनों आँखों को भेद दिया

किया नेत्रहीन सिंह को पर हिम्मत नहीं तोड़ पाया
लिए नेत्र सिंह के पर उसकी विद्या नहीं हड़प पाया

नेत्रहीन होकर भी चौहान ने गौरी को यम तक पहुँचाया
और स्वयं ही स्वतन्त्र मृत्यु को अपने कण्ठ से लगाया

हुआ जब जब आघात राष्ट्र पर एक योद्धा आगे आता है
चौहान की ही भाँति वह इतिहास अमर कर जाता है

जब अकबर ने कब्जा किया देश पर तब मेवाड़ी मिट्टी खौल उठी
और मुग़लों को अकड़कर जय जय महाराणा बोल उठी 

देख महाराणा को स्वप्न में भी अकबर की छाती फट जाती थी
और स्वप्न ही स्वप्न देखते उसे लघु शंका हो जाती थी 

एक दिवस राणा के सम्मुख बहलोल नामक तीर किया
उस बहलोल खान को राणा ने घोड़े सहित ही चीर दिया

पर इतिहास गुलामी में सब तोड़ मरोड़ कर पेश किया
अकबर हुआ महान और यह देश राणा को भूल गया 

बस इसी क्रोध में इतिहासों से जो हटा दिया वो लिखूँगा
मुगलों की वाह वाही पर मैं राणा की तलवार लिखूँगा

हुआ नहीं है अंत अभी बस गिनती तुम करते जाना 
अब आता हूँ वीर शिवा पर अभी पूर्ण हुए हैं महाराणा

थी चित्कारें चहुँ ओर और मंदिर तोड़े जाते थे
घर से निकालकर के सबके धर्मांतरण कराए जाते थे

था आदेश यह आलमगीर का या तो कर या घर दोगे
और कुछ भी न दे पाए तो फिर अपना धर्म बदल दोगे

तभी घनेरे तम के आगे एक सूर्य निकलकर के आए
दक्षिण की पहाड़ी पर से तब शिवा सिंह से गुर्राए

किया घात शत्रु पर और चालीस गढ़ जीत लाए
ग्रसित हुई प्रजाजन को वे अँधेरे से बाहर लाए

बाबर हुमायु अकबर शाहजहाँ ने स्वप्न एक ही सजाया
हो पूरा भारत अपना पर भला कौन पूर्ण यह कर पाया

औरंगज़ेब को भी वीर शिवा ने ऐसा सदमा पहुँचाया
किया मराठा वृक्ष खड़ा जिसने मुग़लों को ढहाया 

किन्तु अभी भारत को कुछ और चोट झेलनी बाकी थी
मुग़लों की पराजय के बाद अब अंग्रेजों की बारी थी

आपस की कटुता में राजा सारे नाते तोड़ गए थे
और स्वयं को अंग्रेजों के हाथों ही छोड़ गए थे

किया राज फिर अंग्रेजों ने भी खूब क्रूरता बरसाई
किन्तु यही समय था जब अनेकों ने वीरता दिखलाई

राजाओं के संग में तब रानी झाँसी ने तलवार उठाई
रानी के हर एक प्रहार से अंग्रेजों ने मुँह की खाई

समय बीतता रहा किन्तु अभी मुक्ति दूर बहुत थी
देते सभी साथ झांसी का तो उतनी भी दूर नहीं थी

बदला समय हुआ आधुनिक काल अभी शुरू था
जकड़ा रहा बेड़ियों में ही जो कभी विश्व गुरु था

किन्तु भूलना नहीं यह भूमि उपजाऊ है वीरों की
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु जैसे शूर वीरों की

चल उठा तूफान अब और लगा वक्त बदलने
नेताजी की रणनीति से तख्त लगे थे हिलने

किन्तु जब जब चरखे का गुणगान सुनाया जाता है
आज़ाद हिंद फौज पर मानो प्रश्न चिह्न लगाया जाता है

बस इसी क्रोध में इतिहासों से जो हटा दिया वो लिखूँगा
जो दे न सके सम्मान कभी वो सम्मान आज मैं लिखूँगा।।

© तरुण त्यागी 

Monday 14 June 2021

हे त्रिलोकि पालक , जटाधारी

हे त्रिलोकि पालक , जटाधारी 
हे कैलाशी हे भुजंगधारी 
डम डम के शोर से तेरे
विपदा जाएं सभी  हारी

हे शम्भू, हे शंकर 
हे महारूद्र भयँकर
हे भोले , भूतेश्वर
नीलकंठ , हे विश्वेश्वर

तेरी माया , तेरी छाया
तुझमें ही ब्रह्मांड समाया
तू ही करता तू ही भरता
भक्तों के दुख तू ही हरता

तेरी महिमा जिसपे पड़े
मृत्यु से वो हँसके लड़े
तेरी कृपा छाया में तो
काल भी हैं दूर खड़े

हे पिनाकी , शूलपाणी
खटवांगी , हे मृगपाणी
तुम ही रुद्र हो तुम ही भूपति
तुम ही दिगम्बर , अष्टमूर्ति

हे पशुपति , हे महादेव 
हे सहस्त्रपाद , हे व्योमकेश
अनन्त तेरे नाम बाबा
अनन्त ही हैं तेरे वेश

जो जन भक्ति में तेरी
भूले हैं संसार को
उनपे रहती दृष्टि तेरी
आठों प्रहर को 

जो भी तेरे द्वार जाए
देव , मनुष्य या असुर
भेद नही तुमने किया 
दिया सभी को इछावर

हे बाबा ये दास तेरा
एक विनती कर रहा
तेरे चरणों मे रहूँ बस
ध्यान यही धर रहा

इतनी शक्ति देना बाबा
लड़ सकूं अन्याय से
और ॐ की छाया तले
कर भी सकूं न्याय मैं ।।

© तरुण त्यागी

Monday 24 May 2021

राधेय कर्ण ही कहलाया

गुरुभक्ति की बात कहूँ 
या कहूँ धनुर्धर की ख्याति

नारी का सम्मान कहूँ 
या दानवीरता की बातें

दयावान था चरित्र इतना
की कोई माँगे न डरता था

माँगले चाहे जो भी उससे
वह हर आशा पूरी करता था

ब्राह्मण , क्षत्रिय , शूद्र , वैश्य 
सबको उसने दान दिया

जब इंद्र पधारे दान माँगने 
उनको भी सम्मान दिया

था अभेद्य सा तन जिसका 
अब वह सबके समान हुआ

बिना कवच और शस्त्रों के भी 
वो योद्धा सबसे महान हुआ

पूरा जीवन श्रापित था उसका
पर किंचित वह न घबराया

अपने कौशल और पराक्रम से 
वह वीर मृत्युंजय कहलाया

दिनकर का था तेज वह 
और अधिरथ का धैर्य पाया

था वह ज्येष्ठ कौन्तेय किन्तु 
सदा राधेय कर्ण ही कहलाय 

© तरुण त्यागी

Saturday 10 April 2021

बीजापुर घटना

फिर मातम की काली रातों का दौर घिरा सा लगता है
फिर माताओं की ममता का आँचल सूना सा लगता है
जंगल मे पशुओं ने फिरसे आतंक मचाया लगता है
पूण: देश में जयचन्दों ने जन्म लिया है लगता है

कब तक आखिर कब तक तुम यूँ हाथ बांध कर बैठोगे
सिंहासन पर कब तक आखिर मौन साध कर बैठोगे
कब तक आखिर इन आदमखोरों का उपचार नहीं होगा
नक्सलवादी सोच पर आखिर कब तक वार नहीं होगा

मैं अपने कड़वे शब्दों में शोर मचाकर पूछूँगा
जितना मुझमें बाकी है सब जोर लगाकर पूछूँगा
सिंहासन की आंखों में मैं आँख डालकर पूछूँगा
पक्ष विपक्ष के नेताओं से भरी सभा में पूछूँगा

कब तक आखिर इन आदमखोरों का नाश नहीं होगा
कब तक बीहड़ चम्बल में कोई विकास नहीं होगा
कब तक मेरे सैनिक भाई यूँ अपनी जान गंवाएंगे
कब तक आखिर रोज़ तिरंगे में लिपटे ये आएंगे

बीजापुर की घटना से मैं अब तक गुस्साया हूँ
सोई कलम को बड़े दिवस के बाद आज उठाया हूँ
वंशज हो तुम पृथ्वीराज के मैं याद तुम्हें करवाता हूँ
और अंत में जयचंदों को उनकी औकात बताता हूँ

भाग्य तुम्हारा साथ नहीं देगा जब बादल घिर आएंगे
बारिश में भी फौजी शेर तुम्हें इन्हीं जंगल में दौड़ाएंगे
काल तुम्हें सम्मुख दिखेगा जब वीर गरजकर आएंगे
प्राण हलक से सूख चलेंगे जब वे हथियार उठाएंगे

Monday 16 November 2020

हँसता चेहरा

हंसता चेहरा भी बडा बेबाक होता है
खिला रहता है हरदम भले बेचैन होता है

जो दिखाई दे रही है हंसी वो कहाँ सच है
उसी झूटी हंसी में छिपी दुख की परत है

न कुछ कहता है वो बड़ा ही शांत रहता है
खरी कितनी सुनादो सब चुपचाप सहता है

कुछ अंदाज़ है ज़िन्दगी का उसका अलग ही
जो इतना झेलकर भी प्यार से मुस्कुराता है

चमक है वो जो आंखों में गम की नमीं है
वो भी झूटी हंसीं में कहीं दब सी गयी है

इस तरह जीना भी कोई आसान नहीं है
दुखों को झेलकर हँसना सबके बस में नहीं है

ठीक ही है अपने दुखों को क्या बताना 
जब ज़िन्दगी का नाम ही है मुस्कुराना

सीखा है मैंने भी उन्हीं खुद्दार चेहरों से 
खुशियाँ बांटते चलो अपनो से गैरो से

Monday 12 October 2020

महाकाल

अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं

भुजंग है गले में सर पे चन्द्र का स्थान है
सेवादार नन्दी है जटा में गंगा विद्यमान है

दिगम्बरी हैं वस्त्र तन पे भस्म का आरेप है
एक हाथ में त्रिशूल एक में डमरू का फेर है

काल के भी काल वे त्रिकाल महाकाल हैं
ॐ के उपासक हैं और कहाते ओमकार हैं

अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं

सत्य के विमोचक हैं भोला स्वभाव है
क्रुद्ध जो हो जाएं तो महारौद्र विकराल हैं

गृहस्त भी वैरागी भी वे देवों के देव हैं
सृष्टि के नियन्ता हैं वे स्व्यं महादेव हैं